July 1, 2025

राहत इंदौरी: एक शायर जिनके अल्फाज अब भी ज़िंदा हैं, 75वीं जयंती पर जानिए उनकी कहानी और योगदान

0

दिल्ली और इंदौर में शेर-ओ-शायरी के दीवाने, और उर्दू शायरी के रौशन सितारे, राहत इंदौरी के चाहने वाले आज भी उनके अल्फाजों से दिलों में जगह बनाए हुए हैं। राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर के परदेसीपुरा इलाके में हुआ था और आज उनका 75वां जन्मदिन है। इस मौके पर इंदौर में उनके बेटे सतलज और फैजल राहत एक भव्य आयोजन कर रहे हैं, जिसमें शायरी की दुनिया के कई दिग्गज शायर शामिल होंगे। राहत साहब का असर न सिर्फ भारत में, बल्कि विदेशों में भी महसूस किया जाता है।

राहत इंदौरी की शायरी में जो ताजगी, सादगी और गहरे एहसास थे, वह आज भी लोगों की ज़ुबां पर हैं। “लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है…” जैसे शब्दों ने उनकी शायरी को अमर बना दिया। वे शायर थे जिन्होंने न सिर्फ शेर-ओ-शायरी के परंपरागत ढांचे को जीवित रखा, बल्कि उसे नए रंग में रंगा। उनका जन्मदिन सिर्फ़ उनके परिवार और दोस्तों के लिए नहीं, बल्कि शायरी के चाहने वालों के लिए भी एक खास अवसर है।

राहत इंदौरी का संघर्ष और सफलता की कहानी

राहत इंदौरी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। इंदौर के एक छोटे से मोहल्ले, परदेसीपुरा में जन्मे राहत इंदौरी ने अपनी जिंदगी की शुरुआत पेंटर के रूप में की थी। उनका काम बैनर और पोस्टर बनाने से शुरू हुआ, लेकिन धीरे-धीरे उनकी शायरी की दुनिया में पहचान बनती गई। वे पोस्टर और बैनर बनाते हुए अपनी शायरियां भी लिखते थे और इन्हें सार्वजनिक स्थानों पर चिपका देते थे। यही वह समय था जब उन्होंने अपनी पहली शायरी लिखी और इंदौर में शायरी के मायने बदल दिए।

राहत इंदौरी का जीवन एक प्रेरणा है, क्योंकि उन्होंने खुद को इस क्षेत्र में साबित किया। उनका नाम इंदौर से बाहर निकलकर देश और दुनिया में मशहूर हो गया। उनका सफर यहीं तक नहीं रुका; वे मुशायरों में आमंत्रित होने लगे, जहां उनकी शायरी ने समां बांध दिया। उनके बेटे सतलज राहत बताते हैं कि राहत इंदौरी एक प्रोफेसर भी थे और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की थी, लेकिन शायरी में उनका जुनून इतना था कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इसे समर्पित कर दी।

राहत इंदौरी की शायरी में गहरे अर्थ

राहत इंदौरी की शायरी न सिर्फ़ इश्क़ और मोहब्बत पर आधारित थी, बल्कि वे समाज और राजनीति पर भी अपनी बातें बेबाकी से रखते थे। “अगर खिलाफ है होने दो, जान थोड़ी है, ये सब धुआं है, कोई आसमान थोड़ी है” जैसी पंक्तियों ने उन्हें एक सशक्त आवाज़ बना दिया। उनकी शायरियों में ना केवल दर्द और प्रेम था, बल्कि जीवन के वास्तविक पहलुओं को उजागर करने की भी क्षमता थी।

उनकी शायरी में ऐसे विचार थे जो आम इंसान के दिल से जुड़े थे। उन्होंने हमेशा अपनी शायरी के माध्यम से इंसानियत, प्रेम, और न्याय की बातें की। उनके अल्फाज अब भी लोगों के दिलों में गूंजते हैं और शायरी के मंचों पर उनका नाम लिया जाता है।

राहत इंदौरी के परिवार का योगदान और उनके बेटे की यादें

राहत इंदौरी का परिवार उनके लिए हमेशा एक मजबूत सहारा था। उनके बेटे सतलज राहत ने बताया कि एक बार राहत इंदौरी ने उन्हें मुशायरा करने से मना किया था क्योंकि वे यह मानते थे कि मुशायरा का मतलब शराबखोरी और रात भर जागना है। लेकिन अपने पिता की प्रेरणा से ही सतलज भी आज मुशायरा करने लगे हैं।

सतलज राहत ने बताया कि उनके पिता हमेशा काम और परिवार के बीच संतुलन बनाए रखते थे, लेकिन जब वह देर से घर लौटते थे तो राहत इंदौरी उन्हें बताते थे कि “तुम सुबह 10 बजे काम पर निकलते हो और रात को 2 बजे घर पहुंचते हो, तो लाखों रुपये कमाते हो, लेकिन घर की खबर रखना भी ज़रूरी है।”

अब भी अमर हैं उनके अल्फाज

हालाँकि राहत इंदौरी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी शायरी अब भी जिन्दा है। उनका एक मशहूर शेर “अब तो ना हूं मैं और ना ज़माने मेरे, फिर भी मशहूर है शहरों में फ़साने मेरे” आज भी उनके चाहने वालों की जुबां पर है। उनका योगदान उर्दू और हिंदी शायरी के क्षेत्र में अमूल्य रहेगा, और जब भी शेर-ओ-शायरी की बात होगी, उनका नाम सबसे पहले लिया जाएगा।

राहत इंदौरी की जयंती इस साल खास होने जा रही है, क्योंकि उनके बेटे उनके योगदान को समर्पित एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन करने जा रहे हैं, जिसमें प्रमुख शायरों के अलावा राहत इंदौरी पर लिखी गई किताबों का विमोचन भी होगा। इस कार्यक्रम में राहत इंदौरी के शेरों और उनके योगदान को याद किया जाएगा और शायरी की दुनिया को फिर से उनके अल्फाजों के साथ जोड़ने की कोशिश की जाएगी।

निष्कर्ष

राहत इंदौरी का नाम हमेशा शायरी की दुनिया में अमर रहेगा। उनकी शायरियां सिर्फ़ शब्द नहीं, बल्कि एक इन्कलाबी सोच की मिसाल थीं। चाहे वह इश्क़ हो, जिंदगी की सच्चाइयां हो, या फिर समाज के मुद्दे, राहत इंदौरी ने हमेशा अपने शब्दों से एक अलग पहचान बनाई। आज उनकी जयंती पर हम उनके अल्फाजों को सलाम करते हैं और उनकी शायरी की दुनिया को हमेशा याद रखते हैं।

Share this content:

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed

error: Content is protected !!