July 1, 2025

सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट्स की पदोन्नति पर बवाल: दिल्ली हाईकोर्ट में मामला, क्या मिलेगा न्याय?

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केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल किए गए अपने जवाब में सहायक कमांडेंट्स (ग्राउंड कमांडरों) की भूमिका को मुख्य स्तंभ मानने से इंकार कर दिया है, जिससे बल के कैडर अफसरों में हड़कंप मच गया है। बल ने कहा है कि कैडर अफसरों का कार्य केवल सुपरवाइजरी है और उनका काम सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक के रैंक की निगरानी करना होता है, जबकि ग्राउंड अफसर, यानी सहायक कमांडेंट्स, किसी भी ऑपरेशन का नेतृत्व करते हैं।

सीआरपीएफ का यह बयान उन सहायक कमांडेंट्स के लिए झटका साबित हुआ है, जो पिछले 15 वर्षों से एक ही पद पर कार्यरत हैं और जिन्होंने अभी तक पदोन्नति का कोई मौका नहीं पाया है। इन कैडर अफसरों की शिकायत है कि उनका योगदान प्रमुख अभियानों में नकारा जा रहा है, जबकि वे आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन, नक्सलवाद से लड़ाई और मणिपुर जैसे संवेदनशील इलाकों में अग्रिम मोर्चे पर मोर्चा संभालते हैं।

सीआरपीएफ का कहना है कि उनकी भूमिका केवल निरीक्षण और मार्गदर्शन तक सीमित है, और यह सिद्धांत सेना या अन्य सीएपीएफ बलों से अलग है, जहां अफसरों की भूमिका निर्णायक होती है। हालांकि, कैडर अफसरों का दावा है कि उनका काम सिर्फ सुपरविजन तक सीमित नहीं है; वे मोर्चे पर अपने जवानों का नेतृत्व करते हैं और उनके फैसले सीधे तौर पर अभियानों की दिशा तय करते हैं।

विभागीय जवाब पर कैडर अफसरों का नाराजगी व्यक्त करना

इस जवाब के बाद, प्रजीत सिंह (2009 बैच के सहायक कमांडेंट) और अन्य कैडर अफसरों ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने यह मांग की कि उन्हें अन्य सीएपीएफ बलों के अफसरों की तरह समान प्रमोशन और आर्थिक लाभ मिलें। उनका कहना था कि समय पर प्रमोशन और साफ-सुथरी पदोन्नति प्रक्रिया बल के मनोबल को मजबूत करेगी और उनकी कठिनाई को दूर करेगी।

सीआरपीएफ ने अपनी याचिका में कहा कि पदोन्नति नियम अन्य कर्मचारियों से अलग होते हैं और कैडर अफसरों की पदोन्नति वैकेंसी बेस्ड होती है। विभाग ने यह भी दावा किया कि कैडर अफसरों को पहले ही चार साल की सेवा के बाद सीनियर टाइम स्केल मिल चुका है, जिससे उनकी स्थिति पहले से बेहतर है।

क्या यह मामला गहराएगा?

हालांकि, इस विभागीय जवाब को कैडर अफसरों ने गैर-जिम्मेदाराना और अव्यावसायिक बताया है। उनका कहना है कि उनकी भूमिका को नकारना और उन्हें सिर्फ निरीक्षक मानना उनके संघर्ष और बलिदान की अनदेखी है। वे कहते हैं कि कोई भी महत्वपूर्ण ऑपरेशन सिर्फ ग्राउंड कमांडर्स की देखरेख में सफल हो सकता है, और उनका नेतृत्व न केवल सैन्य दृष्टिकोण से, बल्कि सुरक्षा मिशन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

क्या मिलेगा समाधान?

यह मामला लंबे समय से चला आ रहा है और कई कैडर अफसरों ने अदालतों का रुख किया है, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है। यदि इस मुद्दे को समय रहते हल नहीं किया गया, तो यह सीआरपीएफ में असंतोष को और बढ़ा सकता है और इसके कार्यकुशलता पर भी असर डाल सकता है।

अब यह देखना होगा कि दिल्ली हाईकोर्ट इस मामले में क्या फैसला सुनाती है और क्या सरकार और विभाग इस समस्या का समाधान निकालकर कैडर अफसरों को उनके उचित अधिकार देंगे या नहीं।

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