July 1, 2025

फर्रुखाबाद: तत्कालीन कोतवाल और पुलिसकर्मियों पर दर्ज हुई एफआईआर, युवक को जेल भेजने का आरोप

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फर्रुखाबाद: थाना प्रभारी समेत एक दरोगा और तीन सिपाहियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। यह मामला कोतवाली मोहम्मदाबाद से जुड़ा है, जहां एक युवक को बिना किसी ठोस वजह के तमंचा लगाकर जेल भेजने का आरोप है। परिजनों की शिकायत पर जांच के बाद एसपी ने मामला दर्ज करने का आदेश दिया।

शिकायतकर्ता के अनुसार, आरोपी पुलिसकर्मियों ने युवक पर दबाव डालते हुए उसे जेल भेज दिया। परिजनों ने इस पूरे मामले में डीजी पुलिस और अन्य उच्च अधिकारियों से शिकायत की थी, जिसके बाद पुलिस ने मामले की गंभीरता से जांच शुरू की। एसपी ने घटना की जांच के बाद पुलिसकर्मियों को दोषी पाया और एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।

एफआईआर में दर्ज आरोप और कार्रवाई
मामला बीएनएस 229(1) धारा में दर्ज किया गया है। थाना प्रभारी मनोज कुमार भाटी, दरोगा महेंद्र सिंह और सिपाही अंशुमन, राजनपाल, यशबीर पर यह मुकदमा दर्ज किया गया है। इन पर आरोप है कि उन्होंने बिना किसी कानूनी वजह के युवक को तमंचा लगाकर जेल भेजा। पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल उठाए गए हैं और आरोप है कि यह पूरी घटना पुलिस द्वारा किए गए अत्याचार का उदाहरण है।

जांच और दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई
सीओ ने मामले की जांच के बाद पुलिसकर्मियों को दोषी पाया था। एसपी ने जांच में दोषी पाए गए पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की और एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए। यह कार्रवाई एसपी के निर्देश पर की गई, ताकि पुलिसकर्मियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सके और उनके कृत्य को लेकर न्याय सुनिश्चित किया जा सके।

परिजनों की शिकायत और पुलिस का रवैया
मामले में युवक के परिजनों का कहना है कि पुलिस ने एक जानबूझकर उसकी मदद न करने का प्रयास किया और उसे सजा दिलवाने की कोशिश की। परिजनों ने उच्च अधिकारियों से मिलकर इस मामले की जांच करने की गुजारिश की थी। शिकायत मिलने के बाद अधिकारियों ने मामला गंभीरता से लिया और एफआईआर दर्ज करवाई।

इस मामले ने पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़ा कर दिया है, खासकर तब जब पुलिसकर्मी खुद कानून के उल्लंघन में लिप्त हों। फर्रुखाबाद के पुलिस विभाग में इस घटना के बाद अब जांच तेज़ी से चल रही है, और यह देखना होगा कि इस मामले में आगे क्या कार्रवाई होती है।

इस घटना से पुलिस विभाग में एक बार फिर से सुधार की आवश्यकता महसूस की जा रही है, क्योंकि यह मामला नागरिकों के अधिकारों और पुलिस के प्रति उनके विश्वास पर प्रतिकूल असर डाल सकता है।

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