भारत ने स्थापित किया नया खगोलीय मील का पत्थर: मेजर एटमॉस्फेरिक चेरेनकोव एक्सपेरिमेंट (MACE) टेलीस्कोप तैयार

भारत ने विज्ञान की दुनिया में एक नई उपलब्धि हासिल की है। लद्दाख के हानले में स्थापित मेजर एटमॉस्फेरिक चेरेनकोव एक्सपेरिमेंट (MACE) टेलीस्कोप ने देश को कॉस्मिक-रे रिसर्च के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान पर स्थापित कर दिया है। यह स्वदेशी टेलीस्कोप अपने विशेष तकनीकी क्षमताओं के कारण दुनिया के प्रमुख जेम्स वेब और हबल स्पेस टेलीस्कोप के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार है।
टेलीस्कोप की विशेषताएँ
MACE टेलीस्कोप, जो दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित इमेजिंग चेरेनकोव टेलीस्कोप है, गामा किरणों और कॉस्मिक किरणों का अध्ययन करेगा। यह इमेजिंग चेरेनकोव तकनीक का उपयोग करता है, जो पृथ्वी के वायुमंडल में गामा किरणों के प्रवेश पर उत्पन्न होने वाले चेरेनकोव विकिरण को रिकॉर्ड करता है। इसकी स्थापना के पीछे मुख्य उद्देश्य ब्लैक होल और सुपरनोवा जैसी खगोलीय घटनाओं के रहस्यों को सुलझाना है।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा
भारत का यह स्वदेशी टेलीस्कोप हबल स्पेस टेलीस्कोप और जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के साथ खड़ा है।
– हबल स्पेस टेलीस्कोप: नासा और ESA द्वारा निर्मित, इसे 1990 में लॉन्च किया गया था। यह 547 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करते हुए पराबैंगनी और निकट-इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रम में काम करता है। हबल ने आकाशगंगाओं की उत्पत्ति और अन्य खगोलीय घटनाओं का गहन अध्ययन किया है।
– जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप: 2021 में लॉन्च, यह हबल का उत्तराधिकारी है और मुख्य रूप से अवरक्त स्पेक्ट्रम में कार्य करता है। यह अपनी संवेदनशीलता के लिए प्रसिद्ध है और ब्रह्मांड की गहरी वस्तुओं का अध्ययन करने में सक्षम है।
MACE की महत्वता
MACE टेलीस्कोप के जरिए भारत उच्च-ऊर्जा खगोल भौतिकी में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करेगा। इसकी क्षमताएँ न केवल गामा किरणों के अध्ययन तक सीमित रहेंगी, बल्कि यह अन्य खगोलीय घटनाओं का भी अध्ययन करेगा। यह टेलीस्कोप भारत को वैश्विक खगोल अनुसंधान में एक प्रमुख खिलाड़ी बनाने के लिए तैयार है।
MACE टेलीस्कोप की सफलता भारत के वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है। यह न केवल भारतीय विज्ञान के लिए, बल्कि वैश्विक स्तर पर खगोल विज्ञान में नई संभावनाएँ खोलेगा। भारत का यह प्रयास दर्शाता है कि देश विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिए लगातार अग्रसर है। अब देखने वाली बात यह होगी कि MACE अपनी क्षमताओं के साथ कैसे वैश्विक खगोल अनुसंधान में योगदान देता है।
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